वॉलंटियरिंग पर 12 सवाल
यह लेख स्वयंसेवकों, स्वयंसेवा और स्वयंसेवकों द्वारा संचालित पारिस्थितिकी तंत्रों (इकोसिस्टम) से जुड़ी कुछ प्रमुख चिंताओं पर चर्चा करता है। इनमें प्रभावशीलता, प्रेरणा, स्वयंसेवकों को जोड़ के रखना, विशेष कौशल और स्वयंसेवकों की थकान शामिल हैं।

यह लेख 12 जनवरी, 2017 को मूल रूप से servicespace.org पर प्रकाशित हुआ था।
[पिछले साल, हममें से लगभग पन्द्रह लोगों ने वर्ल्ड इन कन्वर्जेशन और लैडरशिप सर्किल्स के कुछ दूरदर्शी लोगों के साथ एक चर्चा की। यह चर्चा वॉलंटियर्स के साथ काम करने के बारे में थी। नीचे चर्चा के दौरान और उसके बाद हुए प्रश्नोत्तर दिए गए हैं।]
हमारे प्रयासों की बदौलत बहुत से वॉलंटियर हमसे जुड़ते हैं, लेकिन हम प्रभावशाली ढंग से उनको एन्गैज करने में सक्षम नहीं है। इसे लेकर आपका क्या सुझाव है?
वॉलंटियरिंग के कार्यक्रम की रूपरेखा बुनियादी तौर पर हम अपनी मानसिकता के आधार पर तैयार करते हैं। आम तौर पर वॉलंटियर्स को किसी लक्ष्य तक पहुँचने के ज़रिए के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। यह हमारा लक्ष्य है, अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें यह काम करने की ज़रूरत है और इन कामों को करने में आप हमारी मदद कर सकते हैं, उन्हें इस तरह की बातें कही जाती हैं। सर्विसस्पेस इस तरह से काम नहीं करता है। हमारे लिए, वॉलंटियर का अनुभव अपने आप में एक लक्ष्य होता है। हम मानते हैं कि अगर किसी वॉलंटियर को ऐसा अनुभव होता है, जो उनका नज़रिया ही बदल दे, तो स्वाभाविक रूप से इसका असर पूरी दुनिया पर होगा। वॉलंटियरिंग को लेकर हमारे नज़रिए में बदलाव होने पर सब कुछ अलग-सा नज़र आता है। तब वॉलंटियरिंग की हमारी प्रक्रियाएँ वॉलंटियर्स से काम लेने भर तक सीमित नहीं रह जातीं, बल्कि उनसे रिश्ते बनाने पर केन्द्रित हो जाती हैं। इस नए दृष्टिकोण से वॉलंटियर्स को प्रभावी ढंग से शामिल करने में मदद मिलती है। (संदर्भ: Spirit of Service)
वॉलंटियर्स को प्रेरणा कहाँ से मिलती है?
समाजशास्त्रियों का कहना है कि प्रोत्साहन दो तरह के होते हैं: बाहरी और अंदरूनी। पैसा प्रोत्साहन का बाहरी पक्ष है, जबकि करुणा प्रोत्साहन के अन्दरूनी पक्षों में शामिल है। और निश्चित तौर पर प्रसिद्धि से लेकर विकास और मायने तलाशने तक कई और चीज़ें भी इनके बीच में कहीं आती हैं। प्रोत्साहन के हरेक तरीके की अपनी खूबियाँ होती हैं, और अन्दरूनी सन्तुष्टियों की खूबी यह होती है कि वे नवीनीकृत होती रहती हैं और किसी व्यक्ति को प्रेरित करती रहती हैं। मसलन, देने से अगर किसी को ‘देने का सन्तोषजनक’ अनुभव होता है, तो वे बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप, दबाव या दिखावे के देते रहना चाहेंगे। सर्विसस्पेस में हमारे अनुभव में हमने ध्यान दिया कि जब वॉलंटियर्स की प्रेरणा का स्रोत प्रेम होता है तब वे अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दे पाते हैं। 🙂 (सन्दर्भ: Do Nothing Generosity)
क्या प्रोत्साहन के तौर पर कुछ पैसा देने, स्कूल द्वारा क्रेडिट देने जैसे अन्य प्रोत्साहनों से उनकी प्रतिबद्धता में बढ़ोतरी होती है?
असल में तो इसका उल्टा असर होता है। शोध दर्शाते हैं कि जब बाहरी और अन्दरूनी प्रोत्साहन को मिला दिया जाता है तो बाहरी प्रोत्साहन अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं और आन्तरिक प्रोत्साहन की खुद को नवीनीकृत करने की क्षमता कमज़ोर पड़ जाती है। उदाहरण के लिए, जाने-माने शोधकर्ता एडवर्ड डेसी (Edward Deci) ने ऐसे लोगों का अध्ययन किया, जिन्हें पहेलियाँ सुलझाना पसन्द था। शुरू में वे पहेलियाँ केवल इसलिए सुलझाते थे क्योंकि उन्हें ऐसा करना पसन्द था, लेकिन फिर एडवर्ड ने उन्हें इसके पैसे देने शुरू कर दिए। बाद में, उन्होंने उनको पैसे देने बन्द कर दिए और उन्हें उम्मीद थी कि वे अपनी पहले की स्थिति में लौट आएँगे, लेकिन उनकी उम्मीद से परे हुआ यह कि पहेलियाँ सुलझाने में उनकी दिलचस्पी ही खत्म हो गई! (सन्दर्भ: Can We Create Social Change Without Money?)
क्या लोगों को नौकरियाँ देकर उनकी मदद करना सार्थक नहीं?
लोगों की मदद करना बेशक सार्थक है, लेकिन यह भी सच है कि आप सभी लोगों की सभी ज़रूरतें और अपेक्षाएँ पूरी नहीं कर सकते। आपको अपनी रचनात्मक सीमाएँ चुननी होंगी। सर्विसस्पेस में हमें लगा कि अगर हमारे पास पैसा होगा तो हम पूर्वानुमानित ढंग से, कारखाने की तरह काम करने के लिए अपनी कार्यक्षमता में सुधार कर सकेंगे। लेकिन कॉर्पोरेट की तरह काम करने का ऐसा तरीका, करुणा के काम करने के तरीके से मेल खाता नहीं लगा। करुणा धीरे-धीरे, अप्रत्याशित और सहज तरीके से विकसित होती है, ठीक वैसे ही जैसे जब आप बागवानी करते हैं तो बीज बो देते हैं और फिर उनके स्वभाविक रूप से उगने का इन्तज़ार करते हैं। तो हम तीन रचनात्मक सीमाएँ चुनते हैं:
- पूरी तरह से वॉलंटियर्स पर निर्भरता,
- फंड्स न जुटाना, और
- छोटे-छोटे कार्यों पर ध्यान केन्द्रित करना।
इसने कुछ मायनों में हमें सीमित किया, लेकिन जिस तरह से कोई अन्धी महिला सुनने की बढ़ी हुई क्षमता विकसित कर लेती है, ठीक उसी तरह हमारी सीमाओं की बदौलत ही हम कई अन्य विविध तरह के संसाधनों तक पहुँच सके। (सन्दर्भ: Tao of CharityFocus, Values of CharityFocus पर वीडियो)
वॉलंटियर्स के प्रबन्धन में काफी पैसा खर्च होता है। हम यह क्षमता कैसे निर्मित करते हैं?
वॉलंटियर्स के प्रबन्धन के लिए वॉलंटियर्स को ही इस्तेमाल करें। शोधकर्ताओं ने पाया है कि आपदा के बाद किया जानेवाला राहत कार्य औपचारिक संगठनों के प्रयासों पर निर्भर रहने के बजाए नेक नीयत रखनेवाले व्यक्तियों की अस्थाई सहायता से ज़्यादा बेहतर ढंग से किया जा सकता है। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि आपातकालीन स्थितियों में तो इसकी कल्पना की जा सकती है, लेकिन क्या यह तरीका उन स्थितियों में भी कारगर होगा, जिनमें तुरन्त कार्रवाई की ज़रूरत नहीं होती? कर्मा किचन के वॉलंटियर्स को काम शुरू करने से पहले केवल आधे घण्टे उनकी भूमिका और ज़िम्मेदारी समझाए जाने के बाद वे पूरा का पूरा रेस्टोरेंट चलाते हैं। यहाँ ऐसे वॉलंटियर एक साथ मिलकर काम करते हैं, जिन्होंने पहले कभी न तो किसी रेस्टोरेंट में काम किया होता है और न ही एक दूसरे के साथ काम किया होता है। हमने ऐसे कार्यक्रम हज़ारों अलग-अलग वॉलंटियर्स के साथ और किसी मानव संसाधन विभाग के बिना संचालित किए हैं।:) जब प्रबन्धन में शामिल लोग नियंत्रण या अधिकार दिखाने की बजाए कृतज्ञता प्रदर्शित करते हैं उस स्थिति में यह कारगर होता है। हम इसे “औरों के लिए अगुआकार बनने” के “औरों के लिए सीढ़ी बनने” में बदलने के तौर पर देखते हैं। इसमें आप इस तरह से नेतृत्व करते हैं जिससे दूसरे लोग ज़ाहिर तौर पर इतने सशक्त बनें कि नेतृत्व के मामले में वे आपसे भी आगे निकल जाएँ। यह एक तरह का ‘सेवक नेतृत्व’ होता है जिसके तहत समर्थन पहले प्रदान किया जाता है और नेतृत्व बाद में किया जाता है। जब वॉलंटियरिंग के आपके सफर में कोई व्यक्ति आपके लिए सीढ़ी बनकर निस्वार्थ भाव से नेतृत्व में आगे बढ़ने में आपकी मदद करता है तो समय बीतने के साथ कुछ वॉलंटियर स्वभाविक रूप से कृतज्ञ महसूस करेंगे और उसी तरह से दूसरों की मदद करेंगे। कृतज्ञता का ऐसा जाल ही इस संसाधन का लाभ उठाने की कुंजी है। (सन्दर्भ: Emergence of Laddership Circles)
वेतनभोगी कर्मचारियों के विपरीत, वॉलंटियर्स को कहीं अधिक नुकसान उठाना पड़ता है। इसकी भरपाई हम कैसे कर सकते हैं?
ऐसी प्रक्रियाएँ और संरचनाएँ निर्मित करें जहाँ एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए कई घटक उपलब्ध हों। प्रकृति इसका काफी अच्छा उदाहरण है। इसमें जब प्रणाली का कोई एक हिस्सा अपेक्षित कार्य को पूरा नहीं कर पाता तो दूसरा हिस्सा उसकी जगह ले लेता है ताकि सब कुछ सुचारू रूप से चलता रहे। कैटरीना तूफान के बाद सभी घर उजड़ गए लेकिन ओक के पेड़ बचे रहे, केवल इसलिए नहीं क्योंकि इनकी जड़ें गहरी थीं, बल्कि इसलिए क्योंकि ये जड़ें ओक के दूसरे पेड़ों की जड़ों से जुड़ी हुई थीं और कभी-कभार तो 100 मील तक फैली हुई थीं! किसी पारिस्थितिक तंत्र की विपरीत परिस्थितियों में खुद को बचाए रख सकने की क्षमता उस पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न हिस्सों के बीच के जुड़ावों की संख्या पर निर्भर करती है। किसी संजाल में जुड़ावों की संख्या को प्रभावी बनाने का सबसे मज़बूत विकल्प “अनेक से अनेक” मॉडल है। जैसे कि इंटरनेट अनेक लोगों को जोड़ सकता है जबकि टीवी किसी इन्सान को अनेक लोगों से जोड़ता है। एक और उदाहरण टेलीफोन का है जो किसी एक इन्सान को किसी दूसरे इन्सान से जोड़ता है (एक से एक)। (सन्दर्भ: Gandhi 3.0)
वॉलंटियर रुचिपूर्वक भागीदारी करते रहें और काम न छोड़ें इसके लिए हम क्या कर सकते हैं?
इसका विकल्प अलग-अलग स्तर पर और अलग-अलग तरह से भागीदारी की स्वतंत्रता है। अगर वॉलंटियर आसानी से अपनी भागीदारी को बढ़ा या घटा सकते हैं तो इस बात की पूरी सम्भावना होती है कि वे न केवल टिके रहेंगे, बल्कि भविष्य में ‘औरों के लिए सीढ़ी बनने’ की भूमिकाएँ और भी ज़्यादा निभाएँगे। इसके लिए आपको उन्हें कई अलग-अलग तरह से भागीदार बनाना होगा। वॉलंटियर्स की उपलब्धता, रुचि और परिस्थितियों के आधार पर अलग-अलग समय पर उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने से वे एक बार में, हर महीने थोड़ा- थोड़ा, या ज़्यादा नियमित रूप से, या फिर यहाँ तक कि निश्चित समयावधि के लिए प्रति सप्ताह पचास घण्टे तक का समय दे सकते हैं। इस तरह की व्यवस्था को सक्रियता से बनाए रखने के लिए बहुत सारे कर्मचारियों की ज़रूरत होगी, लेकिन अगर आपके पास एक ऐसा तंत्र है जिसे वॉलंटियर ही संचालित करते हैं तो फिर एक ऐसा चक्र बन जाता है जिसमें एक क्रिया कई लाभकारी परिणाम लेकर आती है: जैसे-जैसे वॉलंटियर किसी संगठन में खास तरह से भागीदारी करते हैं, उनमें से कुछ ग्राहक यानी ग्रहण करनेवालों से योगदानकर्ता बन जाते हैं। ऐसे में विफलता का जोखिम कम होता है और लोगों के लिए नेतृव वाली भूमिकाओं में आना आसान होता है. इसलिए ये योगदानकर्ता पहलकर्ता बन सकते हैं और भागीदारी के अलग-अलग स्तरों पर अपनी भूमिका स्थापित कर सकते हैं और उसे बनाए रख सकते हैं। जैसे-जैसे ज़्यादा लोग जुड़ते हैं, ज़्यादा परियोजनाएँ शुरू होती हैं; जैसे-जैसे परियोजनाओं की विविधता का दायरा बढ़ता जाता है, इसमें भागीदारी के लिए ज़्यादा लोग आकर्षित होते जाते हैं। (सन्दर्भ: ServiceSpace Engagement Spectrum )
हम ज़्यादा वॉलंटियर्स को कैसे आकर्षित करें?
किसी को आकर्षित करने की ज़रूरत नहीं। भागीदारी के लिए लोगों को मजबूर करने की बजाए आपको ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि लोग स्वाभाविक रूप से भागीदारी करने के लिए आकर्षित हों। आम तौर पर, लोगों के पास ऐसा कुछ होता है जिसे वे पेश करना चाहते हैं, यह कोई उत्पाद हो सकता है, विचार हो सकता है, या दुनिया को देखने का नज़रिया हो सकता है और उस उसे दूसरे लोगों तक प्रभावी ढंग से पहुँचाने के लिए हम अपने ‘बाज़ारों’ का इस्तेमाल करते हैं। मसलन मान लीजिए कि आप दयालुता फैलाना चाहते हैं। इसका एक तरीका यह है कि ‘बिलियन एकट्स ऑफ काइन्डनेस’ प्लेटफ़ॉर्म के लिए एक योजना बनाई जाए और धौंसबाज़ी में हो रही व्यापक वृद्धि को हल करने के बहाने, तथा औरों को इसके बारे में बताने के लिए मार्केटिंग रणनीतियाँ तैयार की जाएँ। इससे सफलता की ज़िम्मेदारी आप पर आ जाती है। यह एक बोझिल और भारी ज़िम्मेदारी है। इसका एक वैकल्पिक तरीका महज़ अपने मूल्यों पर टिककर उनका पालन करना है। आप स्वयं भी नियमित रूप से दयालुता के कार्य करें, उनके बारे में बताएँ, और ऐसे किसी भी इन्सान के लिए अपने दरवाज़े खुले रखें जो दयालुता के प्रयासों में और अधिक भागीदारी करने का इच्छुक हो। लोगों को प्रोत्साहित करने के मामले में लालच जैसे मूल्य स्थाई नहीं होते, लेकिन दयालुता जैसे जन्मजात मूल्यों की वजह से लोग इसकी ओर खिंचे चले आएँगे। सर्विसस्पेस के सभी संसाधन हमें बिना किसी अनुरोध के प्राप्त होते हैं। हम एक साल में 70 मिलियन ईमेल भेजते हैं, लेकिन इसमें विज्ञापन एक भी नहीं होता। हमें कहीं भी आवेदन किए बिना हर साल हज़ारों लोगों से व्यक्तिगत रूप से बात करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। हमें 7 अंकों वाले चेक की पेशकश की गई; टीवी पर हमारा पहला प्रसारण सीएनएन पर हिलेरी क्लिंटन के बाद आधे घण्टे का लाइव था। सीएनएन पर उपस्थिति का प्रस्ताव हमारे पास खुद आया था, हमने इसके लिए कोई अनुरोध नहीं किया था। कुल मिलाकर, सर्विसस्पेस सफलता के पीछे भागता नहीं, यह अपने मूल्यों पर टिककर उनका पालन करता है, विस्तार पर ध्यान नहीं देता, और यह विश्वास बनाए रखता है कि सही अवसर स्वाभाविक रूप से आएँगे (सन्दर्भ: Generosity 2.0)
हमें हमारे काम के लिए बहुत विशेषीकृत कौशलों की ज़रूरत होती है। क्या फिर भी हम वॉलंटियर्स का लाभ उठा सकते हैं?
निश्चित तौर पर, लेकिन इसके लिए ऐसी संरचनाएँ और व्यवस्थाएँ बनानी पड़ती हैं, जो अपनेआप में चुनौती भरा होता है। सभी कार्यों को वॉलंटियर्स द्वारा संचालित प्रणाली के तहत पूरा नहीं किया जा सकता है, लेकिन अगर कार्य को वॉलंटियर्स के योगदान को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया हो तो बहुत-से विशिष्ट कार्यों में वॉलंटियर्स की सहायता ली जा सकती है। लिनक्स (linux) इंटरनेट का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जानेवाला ऑपरेटिंग सिस्टम है, और इसे पूरी तरह से वॉलंटियर्स द्वारा बनाया गया था। काउच सर्फिंग ने जिस तरह का भरोसा पैदा किया उससे पूरी दुनिया के लोग अपना लिविंग रूम दूसरों से साझा करते हैं, ये सभी वॉलंटियर होते हैं। एल्कोहॉलिक्स एनोनीमस ने पूरी तरह से स्वैच्छिक होकर हज़ारों लोगों की ज़िन्दगियों पर सकारात्मक असर डाला। सर्विसस्पेस एक ऐसी प्रयोगशाला के जैसा है जिसने बहुत-सी ऑनलाइन और ऑफलाइन परियोजनाएँ शुरू की हैं। ये परियोजनाएँ असंख्य लोगों की ज़िन्दगियों पर सकारात्मक असर डाल रही हैं। इंटरनेट को अपने आप में वॉलंटियरिंग के एक विशाल प्रयास के तौर पर देखा जा सकता है। वॉलंटियर्स के माध्यम से समस्याओं के समाधान में वॉलंटियर्स के विशेषीकृत कौशल चुनौती नहीं होते, बल्कि चुनौती यह होती है कि कार्य को इस तरह से तैयार कैसे किया जाए कि कई कुशल लोग स्वतंत्र रूप से अलग-अलग स्थानों से इस पर काम कर सकें और उनके योगदानों को सहजता से शामिल किया जा सके। (सन्दर्भ: Generosity Entrepreneurs)
वॉलंटियर बर्नआउट। हम इस समस्या से कैसे निपटें?
इसके लिए खुद में अन्दर से बदलाव लाने पर ध्यान केन्द्रित करें। शोधकर्ताओं ने दूसरों के प्रति करुणा रखने की वजह से उपजने वाली थकान का अध्ययन किया है। वॉलंटियर्स का प्रबन्धन करनेवाले सभी लोग आपको वॉलंटियर्स की शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक थकान के बारे में बताएँगे। ऐसा कुछ हद तक तो तंत्र की संरचनाओं और प्रणालियों की वजह से है। होता यह है कि ज़िम्मेदार वॉलंटियर अपने ऊपर ज़्यादा से ज़्यादा काम ले लेते हैं। यह काम इस हद तक बढ़ जाता है कि वे बोझिल महसूस करने लगते हैं। लेकिन ऐसा कुछ हद तक वॉलंटियर्स और कर्मचारियों की प्रेरणा में अन्तर की वजह से भी होने लगता है। पूरी तरह से वॉलंटियर्स संचालित संगठन में प्रेरणा का स्रोत खुद में बदलाव लाना होता है और वहाँ लोग खुद में बदलाव लाने और खुद को व्यवस्थित करने में ज़्यादा सक्षम होते हैं। इस संवेदनशीलता की बदौलत ही थकान में बदलने से पहले ही इस समस्या का समाधान हो पाता है। उदाहरण के लिए, सर्विसस्पेस में इसकी वजह से डेलीगुड के ईमेल्स, स्थानीय अवेकिन सर्किल्स और दयालुता के कार्यों को साझा करने की संस्कृति का निर्माण हुआ। ये सभी ऊर्जा और उत्साह बरकरार रखने में मदद करते हैं। इसके अलावा, ऐसी स्थिति में अगर लोगों को उनके चुनौतीभरे दिनों में सुरक्षित महसूस कराया जाता है और सहारा दिया जाता है तो इससे उनमें आन्तरिक रूप से जो बदलाव होता है उसकी बदौलत वे अधिक कृतज्ञता महसूस करते हैं और उनकी उत्पादकता भी बढ़ती है। (सन्दर्भ: The Organic Gift)
हम वॉलंटियर्स की मदद से नवाचार कैसे करते हैं?
वॉलंटियर बिना पैसे के काम करते हैं जिसकी वजह से आपकी विफलता की लागत कम हो जाती है। नतीजन, आप एक ऐसी संस्कृति निर्मित कर सकते हैं जिसमें लोग नए विचारों को आज़माने और जोखिम उठाने के लिए प्रोत्साहित महसूस करें। इसके लिए आप यह कर सकते हैं कि एक बड़ी योजना बनाकर उसे अमल में लाने के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति करने की बजाए “कई छोटे-छोटे फूलों को खिलने का मौका दे सकते हैं” यानी कई छोटी-छोटी योजनाओं को अमल में ला सकते हैं। हो सकता है कि कुछ विचार विफल हो जाएँ, लेकिन कुछ विचार अप्रत्याशित रूप से क्रान्तिकारी भी हो सकते हैं! ऐसे क्षेत्र में नेतृत्व “योजना बनाने और उसे अमल में लाने” के बजाए “नए-नए विचारों को खोजने और उन्हें विस्तार देने” पर ध्यान केन्द्रित करता है। जब हमने 100 स्माइल कार्ड्स छापे तो हमने यह अन्दाज़ा नहीं लगाया था कि अगले ही दशक में दुनिया भर में लाखों कार्ड छप जाएँगे। हमने यह भी नहीं सोचा था कि स्माइल डेक इतनी सारी भाषाओं में होंगे, या हर महीने हज़ारों कहानियाँ पोस्ट करने वाला एक ऑनलाइन समुदाय होगा या फिर 21 दिन की चुनौती वाला एक पोर्टल होगा। यह सब इसलिए हो पाया क्योंकि हमारे पास नेतृत्व (बेशक हम वॉलंटियर्स की बात कर रहे हैं) था, जो “सामान्य से अलग लेकिन सकारात्मक प्रवृत्तियों को पहचान सके और उन्हें बढ़ावा दे सके। यहाँ तक कि व्यावसायिक क्षेत्र में भी इस स्वैच्छिक दृष्टिकोण की बदौलत ही गूगल जीमेल जैसे अपने प्रमुख उत्पादों को तैयार कर सका। जब लोग बिना पैसे के अपनी मर्ज़ी से परियोजनाओं में शामिल हो रहे हों उस स्थिति में भी नवाचार किया जा सकता है, केवल नवाचार का तरीका अलग होगा। (सन्दर्भ: Four Stages of Community Building, Startup Service’s 8 Questions)
किसी परम्परागत संगठन में हम वॉलंटियरिंग की इस तरह की संस्कृति कैसे शुरू करें?
बदलाव की ज़िम्मेदारी लें। अन्ततः, हरेक संगठन लोगों से मिलकर बनता है और अगर वे लोग खुद में बदलाव लाने की भावना को लेकर संवेदनशील होंगे, तो उनके द्वारा पुरानी समस्याओं को सुलझाने के नए तरीके ढूँढने की गुंजाइश रहेगी। जैसे कि बैठकों से पहले एक मिनट का मौन, एक समूह के तौर पर 21 दिन की चुनौती, गोल घेरे में बैठकर बातचीत। हमें नाटकीय, रातोंरात के बदलावों की तुलना में छोटे-छोटे बदलाव ज़्यादा प्रभावशाली लगते हैं। डेनमार्क के एक होटल में मेहमानों ने ने मीठे नाश्ते की जगह पर सेब को चुना। इसकी वजह यह थी कि होटल वालों ने सेब के बगल में एक बोर्ड रख दिया था जिस पर लिखा था कि “प्रतिदिन एक सेब खाना डॉक्टर को आपसे दूर रखता है।” जिन देशों के अंगदान के आवेदन पत्र पर लोगों को अंगदान के लिए स्वतः ही इच्छुक माना जाता है वहाँ 97.56% लोग अंगदान करते हैं, जबकि जहाँ आवेदन पत्र पर स्वतः ही ‘नहीं’ का विकल्प होता है वहाँ केवल 22.73% लोग अंगदान करते हैं। लोगों को ज़्यादा उदार बनने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कौन से विकल्प को पूर्वनिर्धारित किया जा सकता है? शोध दर्शाता है कि नियमित योगदान करनेवाले किसी एक योगदानकर्ता को पेश करने भर से समूह के सभी लोगों को ज़्यादा उदार बनने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। छोटे-छोटे कार्यों से काफी बड़ा बदलाव आता है। (सन्दर्भ: Designing For Generosity)
सारांश में…
1999 से, सर्विसस्पेस का संचालन वॉलंटियर कर रहे हैं। यह एक तरह की बाधा भी है और पूँजी भी। इससे वित्तीय पूँजी के परे पूँजी के कई रूपों की समझ बनती है। कृतज्ञता के हमारे नेटवर्क में बनने वाले रिश्ते फ़ेसबुक से ज़्यादा गहराई वाले होते हैं। किसी को भी कोई पैसा नहीं दिया जाता, और यही वजह है कि वे और ज़्यादा मेहनत से काम करते हैं। अगुवाई करना सीढ़ी बनने में बदल जाता है। करुणा का प्रसार एक इन्सान से दूसरे इन्सान में होता है, लोगों को करुणामई बनने के लिए मजबूर करने की बजाए हम उन्हें इसके लिए प्रेरित करने पर भरोसा रखते हैं। रूपक बदलकर विनिर्माण से बागवानी हो गया है। यह एक ऐसा तंत्र है जिसमें उदारता के अभ्यास के नए तरीकों को आज़माया जाता है। लोगों को खुद में बदलाव लाने की आन्तरिक प्रेरणा से प्रोत्साहन मिलता है, यह एक ऐसा संसाधन है, जो नवीनीकृत होता रहता है। हम परिणामों का अन्दाज़ा तो नहीं लगा सकते, लेकिन हम इस पर भरोसा रखते हैं कि सही समय आने पर सार्थक चीज़ें स्वाभाविक रूप से घटित होती हैं। जैसे-जैसे लोग अलग-अलग स्तरों पर अलग-अलग तरह से भागीदारी करते हैं, वे ग्राहक यानी ग्रहण करनेवाले से योगदान करनेवाले बन जाते हैं। लेन-देन बहुआयामी सम्बन्धों में बदल जाते हैं। ऐसा माहौल बन जाता है जिसमें लोग एक दूसरे से प्रेम करते हैं। किसे पता कि इसका विस्तार होगा कि नहीं और इससे दुनिया बदलेगी कि नहीं लेकिन हमें किसी तरह की कोई जल्दबाज़ी नहीं — बच्चे को जन्म लेने में भी तो नौ महीने का समय लगता ही लगता है। 🙂 छोटे-छोटे कार्यों को बड़े प्यार से करके हमें खुशी मिलती है। इस प्रक्रिया का हरेक हिस्सा एक महत्त्वपूर्ण परिणाम की तरह लगता है। यह साँस, यहीं और अभी।
हिन्दी अनुवाद: शहनाज़

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