Please fill out the required fields below

Please enable JavaScript in your browser to complete this form.
Checkboxes

स्कूल बंद होने के दौरान और उसके बाद बच्चों को घर पर दी जानेवाली शिक्षा में माता-पिता की भागीदारी से सम्बन्धित दिशा-निर्देश

In this issue, the Government of India's Home Learning Guidelines in Hindi and a set of related relevant web-based resources.

1 min read
Published On : 25 September 2021
Modified On : 21 November 2024
Share
Listen

कोरोना महामारी की वजह से स्कूल लगभग दो साल बंद हैं जिसकी वजह से बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर प्रतिकूल प्रभाव पड रहा है। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए शिक्षा मंत्रालय ने 19 जून, 2021 को माता-पिता के लिए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए। ये दिशा-निर्देश घर पर बच्चों के लिए सीखने का समृद्ध और सकारात्मक वातावरण निर्मित करने से सम्बन्धित हैं। इस लेख में इस दस्तावेज में प्रस्तुत किए गए महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं का सारांश प्रस्तुत किया गया है।

यह दस्तावेज मुख्य तौर पर बच्चों के माता-पिता के लिए है। इस दस्तावेज में ऐसी गतिविधियों का संकलन किया गया है जिनके द्वारा माता-पिता अपने बच्चों को घर पर दी जानेवाली शिक्षा में उनका सहयोग कर सकते हैं। इसमें बच्चों के विकास के प्रत्येक चरण के अनुसार गतिविधियाँ सुझाई गई हैं। इसके साथ ही इसमें बच्चों की शिक्षा को लेकर माता-पिता और स्कूलों की बेहतर साझेदारी से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण सुझाव भी दिए गए हैं। इसमें जिन महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को शामिल किया गया है उसके मुख्य अंश कुछ इस प्रकार हैं:

  • इसमें स्कूलों के बंद होने के दौरान बच्चों के सीखने में माता-पिता, स्कूलों और समुदाय के सदस्यों की सहभागिता से सम्बन्धित दिशा-निर्देश दिए गए हैं। सहभागिता के बारे में जानकारी को ‘क्या’, ‘क्यों’ और ‘कैसे’ में विभाजित किया गया है, जो सभी माता-पिता के लिए प्रासंगिक हैं, चाहे वे पढ़े लिखे हों या अनपढ़। इसमें ऐसी उपयुक्त गतिविधियों सुझाई गई हैं जो सीखने में सहायता करती हैं और जिन्हें स्थानीय वातावरण में उपलब्ध सामग्रियों के उपयोग से घर पर भी आसानी से किया जा सकता है।
  • घर में बच्चों के सीखने के लिए एक समृद्ध और अच्छा माहौल कैसे विकसित करें इस सम्बन्ध में कुछ सिद्धान्तों के बारे में बताया गया है। सीखने की निरन्तरता सुनिश्चित करने में सहयोग कैसे करें इसके बारे में भी बात की गई है, जैसे- अपने बच्चे के सीखने के लक्ष्यों के प्रति जागरूक होना, यह समझ रखना कि माता-पिता ही बच्चों के पहले शिक्षक होते हैं, सीखने की प्रक्रिया को सरल बनाना, बच्चों के साथ निक्क्र रन्तर बातचीत करते रहना, यह समझना कि बच्चे, बच्चों से ही सीखते हैं और इसके अनुसार गतिविधियाँ करना, बच्चों के सीखने के समय, अवधि, स्थान व वातावरण के प्रति सजग रहना। कामकाजी माता-पिता अपने बच्चों का सीखना कैसे सुनिश्चित करें इस सम्बन्ध में भी सुझाव दिए गए हैं।
  • स्कूलों के पुनः खुलने की स्थिति में बच्चों को विद्यालय जाने के लिए कैसे तैयार करें, किन बातों का ध्यान रखें, बच्चों के साथ स्कूल के खुलने के बारे में किस प्रकार की बातचीत की जाए आदि।
  • इसमें माता-पिता की स्कूल में भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए स्कूल द्वारा किए जा सकने वाले प्रयासों का उल्लेख भी किया गया है, जैसे- माता-पिता को विद्यालय के फैसलो में शामिल करना, जानकारियों व संसाधन उपलब्ध करवाना, बच्चों की पढ़ाई के सम्बन्ध में माता-पिता के साथ निरन्तर संवाद स्थापित करना, पूरे सम्मान के साथ माता-पिता के विचारों को सुनना और विद्यालय से सम्बन्धित कार्यों में उनकी समावेशी प्रतिभागिता को सुनिश्चित करना आदि।
  • माता-पिता के लिए घर पर अपने बच्चों की शिक्षा में सहयोग करने और सीखने का समृद्ध वातावारण विकसित करने के कुछ सरल तरीके भी सुझाए गए हैं। इसमें मुख्य रूप से आयु के अनुसार बच्चों के सीखने की प्रक्रिया कैसी हो, सीखने की विषयवस्तु में क्या-क्या शामिल हो, बच्चों के विश्राम का समय कितना हो, बच्चों की पसन्द नापसन्द को ध्यान मैं रखते हुए शिक्षण कैसे हो आदि बिन्दुओं पर बात की गई है।
  • इसमें किशोरावस्था में प्रवेश कर चुके बच्चों के जीवन में माता-पिता द्वारा निभाई जा सकने वाली विभिन्न भूमिकाओं का वर्णन भी किया गया है। इसमें बच्चों की किशोरावस्था के प्रत्येक चरण (जैसे- किशोरावस्था, वयस्कता) के अनुसार उनके साथ की जा सकने वाली विभिन्न गतिविधियाँ भी सुझाई गई है।
  • वे बच्चे जो किसी प्रियजन की मृत्यु से उपजे सदमे या किसी अन्य प्रकार के तनाव और सदमे से गुजर रहे हैं उनके लिए आर्ट थरेपी का उपयोग करने का सुझाव दिया गया है। इसके तहत प्रत्येक आयु समूह (3-8 वर्ष, 8-11 वर्ष, 11-14 वर्ष और 14-18 वर्ष) के बच्चों के साथ की जा सकने वाली गतिविधियों का उल्लेख किया गया है।
  • माता-पिता के लिए बच्चों के सीखने का आकलन स्वयं करने और शिक्षकों द्वारा बच्चों के आकलन के लिए अपनाई जा रही प्रक्रियाओं का हिस्सा बनने के बारे में भी महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं। बच्चों के आकलन की प्रक्रिया बहुत महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि हर बच्चा अलग होता है और हर बच्चे की सीखने की गति भी अलग होती है। इसमें आकलन के विभिन्न तरीके भी सुझाए गए हैं।
  • इस अनिश्चित और कतिन समय में दिव्यांग बच्चों की देखभाल कैसे की जाए, उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाए और उनके सीखने को सुनिश्चित करने के लिए किस प्रकार के कदम उठाए जाएँ इसका उल्लेख भी किया गया है।
  • इसके अलावा इस दस्तावेज में ऐसे माता-पिता का सहयोग करने की बात भी कही गई है जो या तो बहुत कम पढ़े लिखे हैं अथवा अनपढ़ हैं। ऐसे माता-पिता घर पर अपने बच्चे की शिक्षा में किस प्रकार का सहयोग कर सकते हैं. उनके साथ किस प्रकार की गतिविधियों कर सकते हैं इस पर भी प्रकाश डाला गया है।
  • और अन्त में, इस चुनौती भरे समय में माता-पिता अपना ध्यान कैसे रखे इस बारे में भी कुछ सुझाव दिए गए हैं।
Share :
Default Image
Archana Bahuguna
Archana Bahuguna is an educator and founder of Space for Nurturing Creativity nestled in the small Himalayan village of Khumera. She is working in the space of "Alternative Education" for last 20 year.
Comments
0 Comments

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

No approved comments yet. Be the first to comment!