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कथावना नामक रेसिपी के लिए सामग्रियाँ – एक बाल साहित्य महोत्सव का आयोजन

Sonika Parashar and Umashanker Periodi, in their essay, draw out learnings from a children’s literature festival, and discuss how such spaces can be crafted to become a site of learning for all the stakeholders in the K-12 ecosystem.

1 min read
Published On : 10 July 2024
Modified On : 21 November 2024
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जब भी हम स्कूलों में मौजूद स्थानों के बारे में सोचते हैं, तो आमतौर पर हम भौतिक स्थानों के बारे में सोचते हैं। सीखने के उद्देश्य से, ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए किए जानेवाले विशिष्ट आयोजन भी विद्यार्थियों, शिक्षकों और स्कूल के अन्य कर्मचारियों के लिए सीखने और सिखाने का जश्न मनाने की महत्त्वपूर्ण जगह बन सकते हैं। बाल साहित्य महोत्सव ऐसे ही स्थानों में से एक हैं, जिन्हें हम स्कूल के अपने वार्षिक कैलेंडर में शामिल कर सकते हैं। ये महोत्सव हमारे शिक्षार्थी को किताबों व अन्य पाठ्य-सामग्रियों से गहरा रिश्ता स्थापित करने में और साहित्य से जोड़नेवाले एक साधन के विकास में हमारी सहायता कर सकते हैं।

‘कथावना – बाल साहित्य महोत्सव’ के माध्यम से यह आर्टिकल हमारा ध्यान दो महत्वपूर्ण मुद्दों की और खीचता है 1) हम शाला/ कक्ष के बाहर कैसे सीखने सिखाने के मौके बना सकते है, 2) इस प्रकार के आयोजन की प्रक्रिया और हर एक निर्णय/गतिविधि के पीछे की सोच कैसे इन अवसरों/अनुभवों को सभी सहभागियों के लिए अर्थपूर्ण और समाधानकारक बना सकती है।

यह लेख पहली बार सामूहिक पहल के अप्रैल 2023 अंक में अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था।- सम्पादकीय टिप्पणी

हाल ही में हमने अपने सालाना द्विभाषी बाल साहित्य हा महोत्सव कथावना के ग्यारहवें संस्करण 2022-23 का समापन किया। अगर कोई हमसे यह पूछे कि यह कैसा रहा, तो हमारी तत्काल प्रक्रिया एक बड़ी सी मुस्कान और ये शब्द होंगे, “यह एक बहुत बड़ी सफलता थी!” यह लेख उस यात्रा पर केन्द्रित होगा, जिसने हमें यहाँ तक पहुँचाया। इस पूरी प्रक्रिया पर सोचने-विचारने के दौरान, हम उन सामग्रियों पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे, जिनके बारे में हमें यह लगता है कि उन्होंने बाल साहित्य महोत्सव की हमारी रेसिपी को ‘सम्पूर्ण बनाने में योगदान दिया।

सामग्रियाँ

उत्तरदायित्यः किसी भी पहल की सफलता के लिए, ऐसे हितधारकों की जरूरत होती है जो उसमें दिलचस्पी रखते हों और उसे लेकर प्रतिबद्ध हों। प्रति वर्ष, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के फील्ड संस्थानों में और विश्वविद्यालय में नए सदस्य हमारे साथ जुड़ते हैं। कथावना की एक मुख्य टीम है, जो इस काम में विश्वास रखती है और लम्बे समय से इसमें शामिल रही है। फिर भी, हर साल हम सक्रियता से ऐसे लोगों की पहचान करते हैं, जो शिक्षा, भाषा और साहित्य के मुद्दों में रुचि रखते हों और इस पहल से जुड़ने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करते हैं। चूंकि सदस्य अपनी इच्छा से समूह का हिस्सा बनते हैं, इसलिए चुनौतियाँ आने पर उनकी आन्तरिक प्रेरणा और प्रतिबद्धता प्रयास को आगे बढ़ाने में एक अहम भूमिका निभाती है। बातचीत और चर्चाओं के माध्यम से, समूह के सभी सदश्य, चाहे वे किसी भी भूमिका में हों, इस पहल की जिम्मेदारी लेते हैं, जो इसकी सफलता के लिए महत्त्वपूर्ण है।

सिद्धान्त (श्रीअरी) और व्यवहार (प्रैक्टिस) के बीच का सम्बन्धः बाल साहित्य महोत्सव आयोजित करने के पीछे ठोस सैद्धान्तिक विचार हैं (Lynch- Brown, et al., 2014; Matulka, 2008; Putnam, 1964; व अन्य)। ये सैद्धान्तिक विचार हमें दर्शाते हैं कि बाल साहित्य कल्पना, रचनात्मकता और भाषा के विकास में सहायता प्रदान करता है। यह विभिन्न संस्कृतियों और दुनियाओं से परिचित कराने के साथ-साथ खुद की समझ और दूसरों की जिन्दगियों के प्रति समानुभूति निर्मित करता है।

भारत में शिक्षा की जमीनी वास्तविकताएँ हमें दिखाती हैं कि विशेषकर सरकारी स्कूलों के सन्दर्भ में बच्चों और शिक्षकों की- बाल साहित्य तक पहुँच ना के बराबर है। सीखने-सिखाने की सामग्री के तौर पर उनके पास केवल पाठ्यपुस्तके हैं, जो कि बुनियादी साक्षरता के विकास और साहित्य के साथ गहराई से जुड़ाव स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। बच्चों के लिए किताबें और समृद्ध साहित्यिक परम्पराएँ उपलब्ध होने पर भी ऐसी सम्भावना होती है कि शिक्षकों को यह न पता हो कि उन्हें अपनी कक्षाओं में इस्तेमाल कैसे करें।

ऐसे सिद्धान्त जिन्हें जमीनी वास्तविकताओं पर लागू न किया जा सके थे, ठोस शोध और व्यवस्थित प्रक्रिया के बिना किए गए अभ्यासों पर आधारित सिद्धान्त के जितने ही अनुपयोगी होती है।

इस प्रकार, कथावना जैसी किसी पहल के लिए यह महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि जिस सन्दर्भ में पहल का संचालन किया जा रहा है यह उस सन्दर्भ को समझते हुए और फील्ड की जरूरतों की पहचान करते हुए सिद्धान्त को व्यवहार से जोड़े व फील्ड की उन जरूरतों को सम्बोधित करने के लिए ऐसे अभ्यासों का इस्तेमाल करे, जो सैद्धान्तिक रूप से मजबूत हो और मौजूदा शोध द्वारा समर्थित हो।

कथावना क्या है?

कथावना का विचार डॉक्टर शैलजा मेनन ने दिया, जो 2011 से लेकर 2022 तक अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की फैकल्टी थीं। इसे 2012 में शुरू किया गया। इसे कई वर्षों तक अजीम प्रेमजी फाउंडेशन कर्नाटक के क्षेत्रीय संस्थानों द्वारा समर्थन प्रदान किया गया। छोटे बच्चों की जिन्दगियों में मौखिक, लिखित और प्रदर्शनात्मक बाल साहित्य कितना महत्त्वपूर्ण होता है, इसे स्वीकार करना और समझना ही कथावना के केन्द्र में है। इस पहल के माध्यम से, विशेष रूप से सरकारी स्कूलों में, छोटे बच्चों और शिक्षकों को बाल साहित्य की ताकत से परिचित कराने का और स्कूलों में साहित्य के इस्तेमाल में शिक्षकों की मदद के लिए उपयोगी सामग्रियाँ, जैसे कि बच्चों की किताबें और शिक्षकों के लिए संसाधनों को तैयार करने का प्रयास किया जाता है।

पिछले ग्यारह वर्षों से, पाठकों से जुड़ने के मामले में और अलग-अलग तरह की साहित्यिक गतिविधियों की योजना बनाने और उनके क्रियान्वयन के मामले में कथावना ने धीरे-धीरे और लगातार प्रगति की है। फिर भी, ध्यान हमेशा बाल साहित्य को छोटे बच्चों और शिक्षकों के लिए सहजता से प्राप्त करने योग्य बनाने पर रखने के उदेश्य से अलग-अलग सालों में कथावना विविध विषयों को शामिल किया गया है, जैसे कि नीम-गुडः COVID-19 के दौर की कहानियाँ (2021), ‘कन्नड भाषा के बाल साहित्य का कायाकल्प करना (2019), बच्चों के लिए लिखे गए साहित्य को समझना’ (2017), ‘पाठकों के रूप में शिक्षक (2015), ‘साहित्य में बच्चों की आवाजे’ (2014), वगैरह।

कथावना 2022-23 की झलकियाँ?

कधावना 2022-23 के लिए लिया गया विषय बच्चों को किताबों के बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित करना था। इस पहल के ग्यारहवें संस्करण के लिए जिन चार कार्यक्रमों की योजना बनाई गई, उनके माध्यम से यह लगभग 3000 बच्चों और 260 शिक्षकों तक पहुँच सकी। पहला कार्यक्रम, जिसे बाल दिवस के दिन शुरू किया गया, एक ऑनलाइन बाल साहित्य महोत्सव था, जो सप्ताह भर चला। इसे 14 से 18 नवम्बर, 2022 के बीच यूट्यूब लाइव पर आयोजित किया गया। दूसरा कार्यक्रमं एक आवासीय दो-दिवसीय शिक्षक कार्यशाला थी, जो 12 और 13 दिसम्बर, 2022 को हुई। तीसरा, अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय बैंगलुरू में 14 दिसम्बर, 2022 को पहली बार व्यक्तिगत रूप से आयोजित किया गया बहुत बड़ा बाल साहित्य महोत्सव था और चौक्षा कार्यक्रम 3 फरवरी, 2023 को आयोजित की गई एक पैनेल चर्चा थी। इन कार्यक्रमों के बारे में और अधिक जानकारी https://azimpremjiuniversity.edu. in/kathavana-2022 पर पाई जा सकती है।

कल्पना करना और योजना बनानाः किसी भी संगठन या पहल के लिए उसके सामने उपस्थित सम्भावनाओं और बाधाओं पर विचार करते हुए कार्य-योजना की कल्पना करना जरूरी होता है। अच्छा होगा कि पहल का नेतृत्व कोई ऐसा व्यक्ति करे, जो योजना बनाने और उसकी देखरेख व निगरानी का काम, दोनों ही प्रभावी तरीके से कर सके। इसके साथ ही यह भी जरूरी होता है कि कार्य के विभिन्न स्तरों पर जिम्मेदारियों और नियोजन का विकेन्द्रीकरण किया जाए। इसमें विभिन्न हितधारकों की अन्य अतिरिक्त जिम्मेदरियाँ हो सकती हैं, जिसके लिए उन्हें एक साथ कई कार्यों को पूरा करने के लिए अपना समय और ऊर्जा लगाने की जरूरत होगी।

ऐसा भी हो सकता है कि कार्य के स्थानों और शिक्षकों की अपनी खुद की शैक्षणिक पाठ्यचर्या, व्यस्तताएँ और कार्यों को पूरा करने की समय-सीमाएँ हों, जिनकी वजह से उनकी भागीदारी पर असर पड़ सकता है।

बजट से जुड़ी हुई बाधाएँ भी हो सकती है, या फिर उपलब्ध संसाधन व्यक्ति (resource person) कम हो सकते हैं।

बहुत से कार्यों की जिम्मेदारियों लेकर और बहुत कम कार्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी लेकर किसी पहल के साथ न्याय नहीं किया जा सकता इसलिए एक विस्तृत वास्तविक योजना बनाए जाने की जरूरत होती है। इसके साथ ही, एक विषय होने से एक रूपरेखा मिल सकती है, जिसके आधार पर कोई व्यक्ति कार्य-योजना बना सकता है। महोत्सवों के लिए संसाधन व्यक्तियों की पहचान के लिए कथावना 2022-23 से एक उदाहरण यहाँ साझझ्झा किया जा सकता है। इसके लिए संसाधन व्यक्तियों की एक लम्बी सूची बनाई गई, जिसमें से 23 को चुना गया। चयन के कुछ कारकों में ।) विषय के बारे में संसाधन व्यक्ति की विशेषज्ञता, ⅱ) फील्ड, फील्ड के सदस्यों और इन स्थानों पर मौजूद बच्चों के बारे में उनके ज्ञान के आधार पर उच्च गुणवत्ता वाली साहित्यिक गतिविधियों के माध्यम से साहित्य के साथ आलोचनात्मक जुड़ाव बनाने में पाठकों की सहायता करने की उनकी क्षमता और III) टीएलसी समन्वयकों और शिक्षकों के नेतृत्व में संचालित किए जा रहे 72 शिक्षण-अधिगम केन्द्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप इन गतिविधियों के अनुकूलन शामिल थे।

सहायता (फसिलिटेट) करना और क्रियान्वयनः न केवल संसाधनों, सामग्रियों और गतिविधियों को व्यवस्थित और प्रबन्धित करने की जरूरत होती है, बल्कि भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को निर्धारित करना भी महत्त्वपूर्ण होता है। कौन नेतृत्व वाली विशिष्ट भूमिकाएँ निभा सकता है और कौन योजना को क्रियान्हित कर सकता है, इसकी पहचान करने से हितधारकों के लिए अपनी क्षमताओं का इस्तेमाल करते हुए काम कर पाना सम्भव हो पाता है। यहाँ हम जिस नेतृत्व की बात कर रहे हैं वह किसी शिक्षक द्वारा कक्षा में सीखने में सहायता प्रदान करने के लिए निभाई जानेवाली भूमिका के समान है।

प्रभावी शिक्षक यह जानते हैं कि प्रत्यक्ष शिक्षण और विद्यार्थियों द्वारा अपने सीखने की जिम्मेदारी का प्रभार स्वयं पर लेने के बीच सन्तुलन कैसे बनाया जाए। वे अर्थ को समझने में कदम-कदम पर विद्यार्थियों की मदद करते हैं। इसी तरह, एक अच्छे नेतृत्वकर्ता ज़िम्मेदारियों का बँटवारा मात्र नहीं करते, बल्कि लोगों को जो ज़िम्मेदारियाँ दी गई होती हैं, उन्हें सफलतापूर्वक पूरा करने में उनकी मदद भी करते हैं। उन्हें हरेक छोटे-छोटे काम की कड़ी निगरानी करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए और अलग-अलग स्तरों पर लोगों को खुद पहल करने देनी चाहिए। इसके साथ-साथ उन्हें इसकी भी पूरी जानकारी होनी चाहिए कि अलग-अलग स्तरों पर क्या हो रहा है, ताकि जरूरत पड़ने पर वे तुरन्त सहायता प्रदान कर सकें। कथावना में अलग-अलग लोगों ने विभिन्न तरीकों से नेतृत्व की भूमिकाएँ निभाई, जैसे कि राज्य शिक्षा विभाग, फील्ड पर कार्य करनेवाले सदस्यों, स्कूलों, शिक्षकों और बच्चों के साथ समन्वय करना, वॉलन्टियर के तौर पर कार्य कर रहे विद्यार्थियों के साथ कार्य करना, संसाधन व्यक्तियों के साथ समन्वय स्थापित करना वगैरह।

एक ऐसी टीम जिसमें विविध पृष्ठभूमियों, परिवेशों, कौशलों वाले लोग होते हैं, उसके सफल होने की सम्भावना ज्यादा होती है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति विविध क्षमताओं के साथ-साथ एक अलग नजरिया भी लेकर आता है, जो किसी बड़ी पहल के लिए जरूरी होते हैं। उदाहरण के लिए, कथावना की टीम विश्वविद्यालय के फैकल्टी सदस्यों, फील्ड लीडर्स, जिला संस्थान और टीएलसी के समन्वयकों, ब्लॉक समन्वयकों, सामुदायिक सहभागिता विभाग, अनुवाद समूह, आधारिक संरचना सम्बन्धी और प्रबन्धकीय कार्यों के समूह, मीडिया और संचार टीम व स्वेच्छा से जुड़े हुए विद्यार्थियों से मिलकर बनी है। समूह के अलग- अलग सदस्य इसकी गतिविधियों में सहायता प्रदान करने और इसके क्रियान्वयन से जुड़ी अलग-अलग भूमिकाएं निभाते हैं। वे कार्यक्रम की आवश्यकतानुसार अलग-अलग समय पर एक साथ कई भूमिकाएँ भी निभाते हैं।

सहयोग एवं समन्वयः कथावना जैसी कोई पहल तभी सफल हो सकती है, जब इसके विभिन्न हितधारकों के बीच आपसी सहयोग एवं समन्वय हो। इसके प्रत्येक चरण पर सभी में इसकी एक साझी समझ होने और सभी के द्वारा ज़िम्मेदारियों को मिल-जुलकर निभाने की जरूरत होती है। हमारा अनुभव कहता है कि एक दूसरे के साथ लगातार ईमानदारी, अनुशासन, खुलेपन और लचीलेपन के साथ काम करके हम इसे सफलता के मकाम तक पहुँचा सकते हैं।

जिस तरह डोमिनोज प्रभाव में एक घटना एक के बाद एक सम्बन्धित घटनाओं का कारण बनती है, लगभग उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति के कार्य दूसरों के कार्यों से जुड़े होते हैं, जिससे यह जरूरी हो जाता है कि समय-सीमाओं का सावधानी और लगन के साथ पालन किया जाए, अनुवर्ती कार्रवाई समय पर की जाए, कार्य- योजना में मौजूद खामियों को तुरन्त दूर किया जाए और सबसे  महत्त्वपूर्ण बात टीम के सभी सदस्यों में कार्यक्रम की एक जैसी समझ निर्मित करने के लिए संवाद और चर्चाओं को कार्यक्रम का – महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनाया जाए। इस तरह का अनुशासन, सहयोग और समन्वय स्थापित होने में समय लगता है। जब लोग एक दूसरे की सराहना करने की तत्परता के साथ नज़दीकी से एक साथ मिलकर काम करते हैं, एक दूसरे से सीखने के लिए तैयार होते हैं, तो काम के दौरान आनेवाली आनेवाली कई बाधाएँ दूर हो जाती हैं और कई काम आसान हो जाते हैं।

संचार-व्यवस्थाः प्रभावी सहयोग और प्रभावी समन्वय तभी सम्भव होता है जब संचार-व्यवस्था प्रभावी हो। नियमित बैठकों के माध्यम से न संवाद और चर्चा सामान्य अभ्यास बन जाना चाहिए।

किसी विषय पर सोचने से लेकर, ‘क्या’ कार्य किए जाएंगे, ‘क्यों’ और ‘कैसे’ किए जाएंगे से लेकर बड़ी और छोटी सफलताएँ साझा करने तक, विभिन्न हितधारकों के बीच स्पष्ट संचार से उनमें एक साझी समझ विकसित होती है और वे मिल-जुलकर जिम्मेदारियाँ साक्षा कर गाते हैं। जब हर किसी को यह पता होता है कि वे जो न कुछ कर रहे हैं उसे वे क्यों कर रहे हैं, और निर्णय लेने में भी उनकी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, तो उनके द्वारा कार्यों की जिम्मेदारी लेने और सभी जरूरी निर्णय हितधारकों से प्रभावी ने ढंग से साझा करने की सम्भावना अधिक होती है।

अच्छा संचार तभी हो सकता है जब केवल क्या बातचीत की जाएगी’ पर ही नहीं, बल्कि इस पर भी विचार-विमर्श किया जाए कि ‘बातचीत कैसे की जाएगी।’ इसके लिए विभिन्न हितधारकों में लोगों से मेल-जोल बनाने, सभी को महत्त्वपूर्ण बातो की जानकारी देते हुए सभी को शामिल करने की क्षमता, सभी की राय और २ अनुभवों को सक्रियता से सुनने और निर्देश देने के बजाय सहयोग करने की क्षमता होनी जरूरी होती है।

उदाहरण के लिए नवम्बर 2022 से फरवरी 2023 के बीच होने वाले कार्यक्रमों की योजना बनाने के लिए सितम्बर 2022 की शुरूआत से ही कथावना की टीम ने बड़े समूहों में बैठक करनी शुरू कर दी थी। पहली बैठक के तुरन्त बाद, विचार-विमर्श करने, योजना बनाने, ज़िम्मेदारियों का आवंटन करने, समस्या- समाधान करने, साथियों के साथ अपडेट्स, जानकारी और प्रगति साझा करने, समीक्षा करने जैसे अलग-अलग उद्देश्यों से नियमित अन्तराल पर कई बड़ी और छोटी सामूहिक बैठकें हुई। इन बैठकों की बदौलत ही इन कार्यक्रमों के औचित्य, योजनाओं, संसाधनों, सामग्रियों और गतिविधियों को व्यवस्थित और प्रबन्धित करने, चुनौतियों, संकल्पों और अनुभवों से प्राप्त अन्तर्दृष्टियों के बारे में समूह के दूसरे साथियों को बताना और इन पर बातचीत करना सम्भव हो पाया।

चिन्तन और समीक्षाः किसी भी कार्यक्रम के प्रत्येक चरण पर, थोड़ी देर रुककर अब तक किए गए कार्यों का जायजा लेना जरूरी होता है। नियमित चिन्तन और समीक्षा ने कथावना के लिए अतीत से सीखना, हर साल प्रगति करना, उन व्यवस्थित तरीकों से काम करना सम्भव बनाया, जो सीधे फील्ड की जरूरतों को पूरा करते हो। कार्यक्रम में क्या ठीक हुआ और क्या बेहतर किया जा सकता था, इस बारे में फीडबैक न केवल समूह के सदस्यों से, बल्कि प्रतिभागियों जैसे कि, बच्चों और शिक्षकों से भी एकत्र किया जाता है। जितना सम्भव हो पाता है. इस फीडबैंक को अगली बार के कार्यक्रम में शामिल किया जाता है। इस तरीके को अपनाने से ही यह पहल कई गुना आगे बढ़ सकी है और इस पहल के विशिष्ट पहलुओं के लिए संरचित प्रक्रियाएँ स्थापित करना सम्भव हो सका है।

विधि

बच्चों के साहित्य, बच्चों, शिक्षकों और शिक्षा के प्रति खूब सारे प्यार और जुनून के साथ ऊपर बताई गई सभी सामग्रियों को धीरे-धीरे और लगातार मिलाएँ। हालांकि हम इनकी प्रचुरता में यकीन रखते हैं, फिर भी जिस सन्दर्भ में आप रेसिपी तैयार कर रहे हैं उसे ध्यान में रखते हुए इन सामग्रियों की मात्रा में फर्क हो सकता है।

रेसिपी की समीक्षा

हालांकि इस लेख की शुरूआत में हमने एक ‘सम्पूर्ण’ रेसिपी के तौर पर इसका उल्लेख किया था, लेकिन हम यह स्वीकार करते है कि आज हम जिस नतीजे के बारे में बात कर रहे है, वहाँ तक पहुंचने के लिए हमें कई पुनरावृत्तियों और विचार-विमर्श करने पड़े। साथ ही, हमारा यह मानना है कि और अधिक प्रगति करने व और बेहतर करने की हमारी निरन्तर इच्छा के साथ हमे एक लम्बा रास्ता तय करना है। हमने जिन सवालों के बारे में सोचना शुरू किया है, वे कुछ इस प्रकार है:

  • क्या हम इस महोत्सव को न सिर्फ कन्नड़ और अंग्रेजी में, बल्कि ज्यादा से ज्यादा भारतीय भाषाओं में आयोजित कर सकते हैं? शुरूआत के तौर पर हम इसे राजस्थान, छत्तीसगढ़ और उत्तराखण्ड के अजीम प्रेमजी स्कूलों में हिन्दी में आयोजित कर सकते हैं?
  • हम कक्षाओं में साहित्य और भाषा के समावेश पर बाल साहित्य महोत्सवों और शिक्षकों की कार्यशालाओं के प्रभाव की नजदीकी से निगरानी कैसे कर सकते हैं?
  • क्या कम से कम 36000 बच्चों तक पहुँचने के लिए हम व्यक्तिगत मेले को विकेन्द्रीकृत कर सकते हैं और इसे कर्नाटक के कम से कम ऐसे 72 स्थानों पर आयोजित कर सकते हैं, जहाँ हमारी मौजूदगी है?
  • क्या हम अन्य संस्थानों के साथ मिलकर बाल साहित्य महोत्सव को विभिन्न स्थानों पर आयोजित कर सकते हैं?

हमारे अनुभव के आधार पर, हम इस बारे में आबस्त है कि कधावना जैसे कार्यक्रमों में संख्या और विस्तार दोनों के लिहाज से बढ़ोतरी होनी चाहिए, क्योंकि ऐसा देखा गया है कि इनका दोहरा प्रभाव पड़ता है। इसका सीधा-सीधा असर उन बच्चों और शिक्षकों पर पड़ता है, जो साहित्य और भाषा से जुड़ने के सार्थक तरीके खोज पाते हैं।

दूसरा फायदा उन आयोजकों को होता है, जो विषित अकादमिक, प्रबन्धकीय और सामाजिक क्षेत्रों में अपने कौशलों और क्षमताओं का विकास कर पाते हैं। इससे दराने मागिल हरेक त्यति को बाल शाहित्य के साथ निरन्तर जुड़ा कायम रखते हुए एक दूसरे से सीखने की सीख मिलती है।

सन्तर्भ

Lynch-Brown, C. G., Tomlinson, C. M. & Short, K G. 2014. Essentials of children’s literature Pearson Education Limited.

Matulka, D. 1. 2008. A picture book primer Understanding and using picture books. Libraries Unlimited

Putnam, J. F. 1964. ‘Folklore: A key to cultural understanding Association for Supervision and Curriculum Development, 364-368.

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Sonika Parashar
Sonika Parashar is a teacher-educator at Azim Premji University, Bengaluru, where she teaches courses in language education, and curriculum and pedagogy. She has experience and interest in preservice teacher education, curriculum development, language in education, pedagogy of different curricular areas and their integration, art in education, teaching children with specific educational needs and guidance and counselling.
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Umashanker Periodi
Umashanker Periodi has been in the development sector since 1980. He has worked in different NGOs organizing dalits, tribals and the poor. He was trained by Badal Sarkar on third theatre. He has been working with Azim Premji Foundation since 2003, in different roles.
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