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बिहार के सरकारी स्कूलों में किए गए प्रयोग एवं उनमें सरकार की सहभागिता

In their perceptive piece capturing field experiences from their organization’s work, Divya Singh and Ajit Kumar show how bridging the gaps between communities and children’s learning needs on the one hand, and the people and institutions of the governmental education system on the other, can still be a major area of work for education nonprofits.

1 min read
Published On : 8 January 2024
Modified On : 21 November 2024
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करुणोदय की शुरुआत अक्टूबर 2016 में सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से हुई थी। जिस समय करुणोदय ने बिहार में कार्य करना शुरू किया उस समय वहाँ बहुत ही कम गैर सरकारी संगठन कार्य कर रहे थे। कार्य के प्रारम्भ से ही सरकारी स्कूलों के साथ काम का हमारा अनुभव बहुत अच्छा रहा। करुणोदय की शुरुआत करने के लिए देश में विभिन्न जगह हो रहे प्रयोगों को आधार बनाया गया जिसमें मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में हुए विज्ञान शिक्षण प्रयोग, अनिल सदगोपाल जी का नई तालीम पर प्रयोग, गिरीश महाले का पांढुर्णा में प्रयोग, गिजुभाई बधेका का दिवास्वपन, अरविन्द गुप्ता का Toys from Trash, मनीष जैन के Creative learning Initiative के माध्यम से विज्ञान के प्रयोगों से लगातार सीखते हुए हमने बिहार के विद्यालयों के साथ एक का लम्बा प्रयोग शुरू किया जिसके अनुभवों और पड़ावों को यहाँ पर साझा किया गया है।

सरकारी स्कूलों एवं समुदायों के साथ किए गए कार्य

हमने अपने काम की शुरुआत में दो तरीके अपनाए। पहला समुदाय के साथ सीधे तौर पर जुड़कर कार्य करना था। इसके लिए हमने बिह्टा की एक छोटी सी अभावग्रस्त बस्ती को चुना। इस बस्ती में रहनेवाले लोगों का जीवन स्तर सामान्य से काफी निम्न था। यहाँ के लोग बिजली, पानी, आवास जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित थे साथ ही यहाँ जातीय भेदभाव भी व्याप्त था। शुरुआत में करुणोदय द्वारा बच्चों को पढ़ाने से लेकर उनके आधार कार्ड बनवाने, सरकारी विद्यालयों में उनका दाखिला करवाने जैसे कार्य किए गए। इनमें से अधिकांश बच्चे पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी थे। हालाँकि उनके माता-पिता शिक्षा के महत्त्व को कुछ हद तक समझते थे परन्तु शिक्षा की अनिवार्यता से अनभिज्ञ थे।

दूसरे तरीके के तहत हमने स्कूली व्यवस्था के साथ काम किया। इसके तहत शिक्षकों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की समझ बनाने, शिक्षकों के साथ मिलकर के विज्ञान विषय पढ़ाने के लिए शिक्षण अधिगम सामग्री या टीएलएम बनाने, भाषा पढ़ाने के लिए गतिविधियाँ एवं गणित पढ़ाने के लिए गेम डिजाइन करने एवं कक्षाओं में उसके प्रयोग करके देखने जैसे कार्य किए गए। शुरुआत में मैं विज्ञान के प्रोजेक्ट्स के माध्यम से स्कूलों से जुड़ा। इस क्रम में मैंने मिडिल स्कूल अमहारा, मिडिल स्कूल राघोपुर, मिडिल स्कूल फुलवारीशरीफ़ के साथ कार्य प्रारम्भ किया। वर्ष 2017 में बेगूसराय जिले के साहेबपुर कमाल में चौकी गाँव में 2 मिडिल स्कूल एवं 1 प्राइमरी स्कूल के शिक्षकों को कार्य करने में हो रही कठिनाई को देखते हुए वहाँ पदस्थ कक्षा 1-8 के सभी भाषा एवं गणित के शिक्षकों को बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान का 3 दिन का प्रशिक्षण दिया गया और समय समय पर उनका सहयोग दिया गया। इस प्रयोग के बाद बच्चों में आए सकारात्मक बदलावों से इस काम को एक नई दिशा मिल गई और बच्चों के साथ साथ शिक्षकों के साथ काम करना भी हमारे काम का हिस्सा बन गया।

हमारे कार्यों के दौरान हमने यह देखा कि भवन, शिक्षकों और बच्चों की पर्याप्त संख्या जैसी सभी मूलभूत सुविधाएँ होने के बावजूद भी इन स्कूलों के शिक्षक सिर्फ दिखावे के लिए कार्य कर रहे थे और उनमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने को लेकर उदासीनता का भाव था। जब हमने इसके पीछे के कारणों को समझने की कोशिश की तो पाया कि शिक्षकों में मूल रूप से प्रेरणा एवं कौशल की कमी थी। इसके साथ ही सरकारी नौकरी को आरामदायक नौकरी मानने की समाज की धारणा ने भी उन्हें उदासीन बना दिया था। इस सन्दर्भ में सरकार के प्रयासों की बात करें तो वह भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में उतनी रुचि नहीं लेती और न ही इस दिशा में कोई खास प्रयास करती है। न तो शिक्षकों को नियमित अन्तराल पर सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान किए जाते हैं और न ही उनके कामों के निरीक्षण के लिए स्कूलों में अधिकारियों के नियमित दौरे होते हैं। इन्हीं कारणों से ये स्कूल सरकारी योजनाओं को अमल में लाने का स्थान मात्र बनकर रह जाते हैं।

शिक्षा विभाग एवं डायट के साथ किए गए काम

हमारी संस्था द्वारा स्कूलों में किए जा रहे प्रयोगों से शिक्षकों के पढ़ाने के तरीकों में एवं बच्चों के सीखने में सकारात्मक बदलाव दिखने लगे। कक्षा तीसरी से लेकर पाँचवीं तक के कई बच्चे पढ़ना सीख गए। इसके साथ ही हमने स्कूलों में हुए इन बदलावों को टिकाऊ बनाने की जरूरत भी महसूस की। इसके लिए हमने क्लस्टर, ब्लॉक एवं जिला शिक्षा कार्यालय के साथ सीधे जुड़कर कार्य करना प्रारम्भ किया। स्कूलों तक पहुँचना हमारे सामने मौजूद सबसे बड़ी चुनौती थी और शिक्षा विभाग के सहयोग के बिना यह कार्य आसान नहीं था। हमें यह समझ आया कि स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के किसी भी प्रयास में जिले को एक इकाई के तौर पर मानकर कार्य करना जरूरी है और यह तरीका हमारे कार्य में बहुत प्रभावी साबित हुआ।

इसी कड़ी में जनवरी 2019 में हमने क्लस्टर स्तर पर शिक्षकों के लिए बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान पर आधारित कार्यशाला आयोजित करने की सोची। इसे आयोजित करने के लिए शासन से आदेश प्राप्त करने में हमें काफी चुनौती का सामना करना पड़ा और जिला शिक्षा पदाधिकारी एवं जिला कार्यक्रम पदाधिकारी से बार बार मिलने के बाद भी जिला शिक्षा विभाग ने आदेश नहीं दिया। लेकिन इससे एक अच्छी बात यह हुई कि बार-बार जाने से शिक्षा विभाग के बहुत से अधिकारियों से हमारी जान-पहचान हो गई।

कोरोना अवधि में हमारे द्वारा किए गए कार्य

2020 में कोरोना की वजह से शिक्षा व्यवस्था काफी प्रभावित हो गई थी और लगभग सभी काम ऑनलाइन हो रहे थे। इसी बीच डिपार्टमेंट ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने इंस्पायर अवार्ड कार्यकर्म शुरू किया और छठवीं से लेकर बारहवीं तक के बच्चों से अपने आसपास की किसी समस्या के समाधान के लिए सुझाव माँगे गए। इसमें गया जिले से मात्र 15 पंजीकरण हुए एवं 38 जिलों में गया 32वीं रैंक पर था। इस पर प्रिंसिपल सेक्रेटरी ने क्षुब्ध होकर जिला शिक्षा पदाधिकारी को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। मैंने जिला शिक्षा पदाधिकारी से इसके लिए काम करने के बारे में बात की और वे राजी हो गए। करुणोदय, जिला कार्यालय एवं 260 क्लस्टर रिसोर्स पर्सन ने मिलकर काम किया, 10 ऑनलाइन सत्र आयोजित किए और हम 5000 पंजीकरण प्राप्त करने में सफल हो गए। इस प्रकार गया पूरे बिहार में तीसरी रैंक पर आ गया। इसी प्रकार दीक्षा में भी पहलेपहल 1 प्रतिशत से भी कम पंजीकरण हुए थे और हमारे प्रयासों से पंजीकरणों की संख्या बढ़कर 90 प्रतिशत से भी अधिक पहुँच गई थी। इन सफलताओं से शिक्षा विभाग में हमारी अच्छी पैठ बन गई और अधिकारियों से विश्वसनीय रिश्ते बने। इन्हीं विश्वसनीय रिश्तों की बदौलत हमें शिक्षा विभाग द्वारा आगामी समय में शासकीय विद्यालय में छात्रों एवं शिक्षकों के साथ कार्य करने की अनुमति लिखित रूप से दी गई। इसके साथ ही विभाग में APO/ CRCC की तिमाही बैठक में भागीदारी करने, शासकीय रीडिंग कैंपेन का हिस्सा बनने, जिला एवं ब्लॉक समिति, स्कॉलरशिप समिति, स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार, निपुण भारत 2030 की सदस्यता के साथ-साथ ज़िला कलक्टर की बैठक में व जिला शिक्षा विभाग राज्य एवं जिला स्तर पर होनेवाले नए-नए कार्यक्रमों में भी करुणोदय को शामिल किया जाता है।

करुणोदय फाउंडेशन ने निपुण भारत मिशन योजना के तहत चलाए गए 100 डे रीडिंग कैम्पेन में भी योगदान दिया। इसमें यह योजना बनाई गई थी कि शिक्षक बच्चों के छोटे-छोटे समूह बनाकर या व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से बच्चों को शिक्षित करेंगे। इसके लिए गया जिले में करुणोदय फाउंडेशन को यह ज़िम्मेदारी सौंपी गई। हमने सबसे पहले शिक्षकों का एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया और उसमें साप्ताहिक कार्य योजना भेजनी शुरू की। इसमें पाठ्य सामग्री को नियमित ग्रुप में भेजा जाने लगा, जिससे शिक्षकों के लिए इस ऑनलाइन सामग्री के माध्यम से पढ़ाना आसान हो गया। इस अभियान में चार हजार से ज्यादा शिक्षकों को जोड़ा गया। गया जिले के सभी शिक्षको ने व्हाट्सएप के द्वारा बच्चों की शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए इस अभियान में हिस्सा लिया। जिन शिक्षकों के पास डिजिटल क्लास की सुविधा नहीं थी उन्होंने बच्चों के छोटे छोटे समूह बनाकर पढ़ाया। इससे बच्चों का शिक्षा से जुड़ाव बना रहा और बच्चे इससे लाभान्वित होने लगे।

कार्य करने के दौरान होने वाली चुनौतियों में से एक मुख्य चुनौती सरकारी विभाग में अधिकारियों के ऊपर कार्य का अत्यधिक भार एवं उनकी बदली है। यही नहीं एक आदेश को निकलवाने में सदैव अधिक समय एवं अतिरिक्त ऊर्जा की हानि होती है। इसके अलावा कुछ शिक्षक बीएलओ होते हैं और उन पर काम का काफी बोझ होता है जिससे वे पूरा सहयोग नहीं कर पाते हैं। इसके अलावा लिटरेसी एवं लाइब्रेरी प्रोग्राम में डेटा को एकत्रित करना बड़ी चुनौती है।

लाइब्रेरी एवं लिटरेसी प्रोग्राम

गया जिले के डीईओ राजदेव राम सर, आनन्द सर एवं बिनोदानन्द झा सर के सहयोग से अन्ततः शासन से प्राप्त आदेश का अनुपालन करते हुए करुणोदय ने लिटरेसी एवं लाइब्रेरी प्रोग्राम को अमली जामा पहनाया। इस कार्यक्रम के प्रारम्भ में अपनी क्षमता और यथार्थता को ध्यान में रखकर गया हमने जिले के 15 स्कूलों का चयन किया। इन स्कूलों में से ऐसे 25 शिक्षकों को चुना गया जिनमें अपने कार्य के प्रति समर्पण और सीखने की ललक थी और कार्यक्रम के प्रथम चरण में उन्हें तीन दिवसीय प्रशिक्षण प्रदान किया गया। इसके पश्चात उन 15 विद्यालयों में पुस्तकालय स्थापित किए गए और पुस्तकालय कक्ष में प्रिंट रिच दीवार, अलमारी, बच्चों की पुस्तकों का चयनित संग्रह, दरी, चार्ट, स्टेशनरी का सामान आदि की व्यवस्था की गई। पहले तो करुणोदय की टीम द्वारा नियमित विद्यालयों में जाकर स्वयं समस्त गतिविधियों का संचालन किया गया, फिर धीरे-धीरे इन्हीं गतिविधियों को शिक्षकों के साथ मिलकर किया गया। समय के साथ शिक्षकों ने इन गतिविधियों एवं प्रक्रियाओं को आत्मसात कर लिया। दस महीने के पश्चात शिक्षकों को पुनः तीन दिवसीय प्रशिक्षण प्रदान किया गया। इस कार्यक्रम का मूल्यांकन करने के लिए हमने अकादमिक सत्र की शुरुआत और अन्त में क्रमशः बच्चों का बेसलाइन टेस्ट और एंडलाइन टेस्ट लिया और इनमें हमें काफी सकारात्मक नतीजे हासिल हुए। जहाँ बेसलाइन में कक्षा 3-5 तक के मात्र 30% बच्चे वर्ग सापेक्ष पढ़ना जानते थे वहीं एंडलाइन में यह प्रतिशत बढ़कर 72% हो गया। इसके साथ ही शिक्षकों ने भी अपने स्कूल में पुस्तकालय का सेट अप करना सीख लिया व उनमें बाल साहित्य एवं कहानी कहने के कौशल भी विकसित हुए।

लाइब्रेरी एवं लिटरेसी प्रोग्राम की सफलता एवं करुणोदय के अथक प्रयासों के फलस्वरूप शासकीय स्तर पर भी कई बदलाव हुए और हमारे कार्यों को गति मिली। जिला मुख्यालय द्वारा हमें शिक्षक प्रशिक्षण का आयोजन करने के लिए आधिकारिक आदेश तैयार कर के दिए जाने लगे। राज्य सरकार की ओर से यह निर्देश दिया गया कि प्रत्येक कक्षा में एक सप्ताह में पुस्तकालय के दो कालांशों रखे जाएँ। इसके साथ ही बच्चों में पढ़ने की आदत को विकसित करने के उद्देश्य से राज्य शासन द्वारा प्रत्येक विद्यालय में 150- 200 बाल पुस्तकें एवं उनके रखरखाव के लिए 6000 रुपए रैक खरीदने के लिए प्रदान किए गए। इस मुद्दे को महत्वपूर्ण मानते हुए विधानसभा में भी इस पर चर्चा की गई।

बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान के लिए स्कूलों में करुणोदय संस्था द्वारा अपनाए गए नए तरीकों और इनके फलस्वरूप स्कूलों में आए बदलावों से हमें काफी प्रेरणा मिली और हमने इनके बारे में डाइट के साथ चर्चा की। इसके पश्चात डाइट द्वारा हमें वहाँ होने वाले शिक्षक प्रशिक्षण में हिस्सेदारी का अवसर प्राप्त हुआ। इस प्रशिक्षण के माध्यम से शिक्षकों को पुस्तकों को इस्तेमाल करने के ऐसे कई नए कौशल बताए गए जो समझने में तो आसान लग रहे थे पर विद्यालय में प्रायोगिक रूप से करने में मुश्किल प्रतीत हो रहे थे। इसके साथ-साथ करुणोदय को दीक्षा एप पर कोर्स शुरू करने के अवसर दिए गए हैं व डाइट लेक्चरर के साथ कंटेंट बनाने, कंटेंट की समीक्षा के अधिकार दिए गए हैं। करुणोदय को इन पर्सन प्रशिक्षण, डाटा एकत्रित करने के अलावा वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों का हिस्सा भी बनाया गया है।

करुणोदय जिन शासकीय विद्यालयों के साथ काम कर रहा है उनके द्वारा व जिनमें कार्य नहीं कर रहा लेकिन जो करुणोदय के इस कार्यक्रम के बारे में जानते हैं उनके द्वारा नियमित रूप से करुणोदय से पुस्तकालय के संचालन हेतु सहयोग की अपेक्षा की जाती रही है।

करुणोदय के द्वारा संचालित किए जा रहे सभी कार्यक्रमों से न केवल बच्चों के सीखने के स्तर में वृद्धि हुई है बल्कि उनमें समझने, कल्पना करने, तर्क करने, चर्चा का हिस्सा बनने एवं प्रत्येक सह शैक्षणिक गतिविधि में आत्मविश्वास के साथ भागीदारी करने की क्षमता का विकास भी हुआ है। बच्चे अपने कक्षा के कार्यों में भी रुचि दर्शा रहे हैं और प्रगति दर्शा रहे हैं। इसके अलावा शिक्षकों के पढ़ाने के तरीके में बदलाव के कारण वे भी रुचिपूर्ण ढंग से बच्चों के पठन में भागीदार बन रहे है। इस प्रकार विद्यालय की इन इकाइयों (बच्चों, शिक्षकों, भवन एवं प्रबन्धन) में बदलाव से स्कूल के सम्पूर्ण माहौल में आए सकारात्मक बदलाव को स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है।

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Mr. Ajit Kumar
Mr. Ajit Kumar is the Academic Head at Karunoday Foundation.
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Mrs. Divya Singh
Mrs. Divya Singh is currently working as a secondary school teacher in Rewa, Madhya Pradesh. She has also completed the Library Educator course offered by Tata Trust's Parag initiative.
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