प्रारंभिक भाषा शिक्षण की कक्षा प्रक्रिया में सुधार हेतु लैंग्वेज एंड लर्निंग फाउंडेशन की पहल
Gajendra Raut, in his article, discusses ground level initiatives to improve language education in the early years of a child’s learning process.
लैग्वेज एंड लर्निंग फाउण्डेशन (एलएलएफ) एक गैर- सरकारी संस्था है। इसकी स्थापना 2015 में डॉ. धीर झिंगरन के द्वारा की गई जो वर्तमान में इसके कार्यकारी निदेशक हैं और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आलोक में एक नई राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा के विकास के लिए बनाई गई समिति के सदस्य हैं। यह प्राथमिक कक्षाओं में भाषा-शिक्षण को प्रभावी बनाने और बच्चों के सीखने के स्तर में सुधार के लिए कार्यरत है। एलएलएफ का मानना है कि भाषा न केवल अपनी बात कहने का, बल्कि सीखने, सोचने और दुनिया को समझने का भी साधन है। बच्चे औरों से बातचीत करके, सवाल पूछकर तर्क-वितर्क करके, विश्लेषण करके, समूह में काम करके या एक दूसरे के साथ काल्पनिक संवाद करते हुए विभिन्न चीजों के बारे में अपनी स्वतंत्र राय और समझ का निर्माण करते हैं। “जब बच्चे भाषा सीखते हैं तो वे बहुत सारे विषयों में से सिर्फ एक विषय नहीं सीख रहे होते हैं, बल्कि वे सीखने की आधारशिला सीख रहे होते हैं” (हॅलिडे, 1993)। भाषा, सीखने की सभी प्रक्रियाओं-तर्क करने, सोचने, विश्लेषण करने, निष्कर्ष निकालने, समस्याओं को हल करने और विचारों को व्यवस्थित करने में मदद करती है।
एंड लर्निंग फाउण्डेशन (एलएलएफ) एक गैर- सरकारी संस्था है। इसकी स्थापना 2015 में डॉ. धीर झिंगरन के द्वारा की गई जो वर्तमान में इसके कार्यकारी निदेशक हैं और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आलोक में एक नई राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा के विकास के लिए बनाई गई समिति के सदस्य हैं। यह प्राथमिक कक्षाओं में भाषा-शिक्षण को प्रभावी बनाने और बच्चों के सीखने के स्तर में सुधार के लिए कार्यरत है। एलएलएफ का मानना है कि भाषा न केवल अपनी बात कहने का, बल्कि सीखने, सोचने और दुनिया को समझने का भी साधन है। बच्चे औरों से बातचीत करके, सवाल पूछकर तर्क-वितर्क करके, विश्लेषण करके, समूह में काम करके या एक दूसरे के साथ काल्पनिक संवाद करते हुए विभिन्न चीजों के बारे में अपनी स्वतंत्र राय और समझ का निर्माण करते हैं। “जब बच्चे भाषा सीखते हैं तो वे बहुत सारे विषयों में से सिर्फ एक विषय नहीं सीख रहे होते हैं, बल्कि वे सीखने की आधारशिला सीख रहे होते हैं” (हॅलिडे, 1993)। भाषा, सीखने की सभी प्रक्रियाओं-तर्क करने, सोचने, विश्लेषण करने, निष्कर्ष निकालने, समस्याओं को हल करने और विचारों को व्यवस्थित करने में मदद करती है।
एलएलएफ प्राथमिक स्तर की कक्षाओं में बच्चों के घर की भाषा के उपयोग की पैरवी करती है। बच्चों की भाषा में शिक्षण इतना महत्त्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि अपनी भाषा में सोचना, समझना और उच्च स्तरीय काम करना आसान होता है। इसके अलावा घरं की भाषा और स्कूल की भाषा एक होने पर शिक्षकों के लिए बच्चों के अनुभवों, पूर्व ज्ञान और संस्कृति को कक्षा में शामिल करना आसान हो जाता है, सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में बच्चों की सक्रिय भागीदारी होती है और बच्चे अपनी भाषा में वह आत्मसम्मान और आत्मविश्वास महसूस करते हैं जो सीखने के लिए आवश्यक है। स्कूल में बच्चे की भाषा को स्थान देने के सन्दर्भ में जिम कमिन्स कहते हैं, “स्कूल में किसी बच्चे की भाषा को खारिज करना बच्चे को खारिज करने के बराबर है।” अन्य विषयों के शिक्षण अधिगम पर भी इसका प्रभाव पड़ता है क्योंकि जब बच्चे एक परिचित भाषा के माध्यम से सीखते है तो अन्य विषयों में भी उनके अधिगम परिणाम बेहतर होते हैं। कई अध्ययनों में भी इसे रेखांकित किया गया है, जैसे :
भारत में हुए कई अध्ययन बताते है कि आदिवासी बच्चों की पढ़ाई यदि उनकी अपनी परिचित भाषा (L1) में होती है, तो उनका भाषा और गणित में प्रदर्शन उन बच्चों से बेहतर रहता है जो किसी अन्य भाषा (L.2) के माध्यम से पढ़े हों। (सैकिया और मोहन्ती, 2004)
इथियोपिया में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि अपनी भाषा (L1) के माध्यम से पढ़ाई करने वाले बच्चों ने कक्षा 10 में विज्ञान और गणित में बेहतर उपलब्धि हासिल की। (ह्यूग एवं अन्य, 2007)
T USA में लगभग 10 वर्षों तक चले एक अध्ययन में पाया गया कि द्विभाषी शिक्षा (bilingual education) में बच्चों के सीखने के स्तर कहीं अधिक थे। (थॉमस और कोलियर, 1997)
एलएलएफ देश में प्राथमिक स्तर पर भाषा-शिक्षण में सुधार के लिए तीन तरह की रणनीतियों का उपयोग करती है:
शिक्षकों, शिक्षकों को अकादमिक सहयोग देने वाले लोगों एवं प्रशासनिक लोगों का निरन्तर व्यावसायिक विकास करना।
सरकारी स्कूलों में बुनियादी साक्षरता और गणित के परिणामों में सुधार के लिए डेमोंस्ट्रेशन मॉडल का प्रयोग।
प्राथमिक शिक्षा में सुधार के लिए राज्य की मदद करना और व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए लगातार सक्रिय सहयोग प्रदान करना।
वर्तमान में एलएलएफ का कार्य 7 राज्यों में संचालित हो रहा है। ये राज्य हरियाणा, छत्तीसगढ़, असम, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार हैं। हर राज्य में सहयोग की प्रकृति अलग-अलग है। यह हरियाणा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम और ओडिशा राज्य में बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान (Foundational Literacy and Numeracy-FLN)’ मिशन को वृहत स्तर पर अकादमिक क्षेत्र में सहयोग प्रदान करती है। इस मिशन के तहत समग्र शिक्षा अभियान और एससीईआरटी के साथ पाठ्यक्रम और सामग्री निर्माण, शिक्षकों के व्यावसायिक विकास, अकादमिक सहयोग, आकलन, इत्यादि पर काम किया जा रहा है।
हम यहाँ हरियाणा राज्य में राज्य सरकार और एलएलएफ के संयुक्त प्रयास से प्रारम्भिक भाषा शिक्षण पर चलाए गए ‘स्कूल डेमोंस्ट्रेशन कार्यक्रम’ का एक केस अध्ययन (Case Study) पेश कर रहे हैं। इस कार्यक्रम की शुरुआत 2018 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के 175 विद्यालयों से हुई और 2022 तक इसका विस्तार 7 जिलों के 3300 से ज्यादा विद्यालयों में किया गया। इस कार्यक्रम का लक्ष्य बच्चों के भाषाई और साक्षरता कौशल का विकास करना था।
यह कार्यक्रम सन्तुलित भाषा शिक्षण पद्धति पर आधारित था। इस पद्धति में भाषा शिक्षण के दौरान डिकोडिंग सम्बन्धी कौशल (ध्वनि जागरूकता, डिकोडिंग, लेखन) और अर्थ निर्माण पर आधारित कौशल (मौखिक भाषा विकास, सुनने की समझ, समझ के साथ पढ़ना, किताबों के साथ जुड़ाव, स्वतंत्र लेखन) दोनों पर बराबर ध्यान दिया जाता है। इसका उद्देश्य शिक्षण- प्रक्रिया में सन्तुलित भाषा-शिक्षण पद्धति के प्रयोग द्वारा बच्चों के सीखने के स्तर में सुधार लाना था। इसके तहत यह सुनिश्चित किया गया कि प्रत्येक दिन हर कौशल (मौखिक भाषा, शब्द पहचान, पठन एवं लेखन) के अभ्यास से जुड़ी गतिविधियाँ हो। इसके लिए चार-खण्डीय रूपरेखा को अपनाया गया जिसमें मौखिक भाषा विकास, डिकोडिंग, पठन और लेखन पर एक साथ कार्य होंता है। इसके अलावा कार्यक्रम के तहत बच्चों के लिए कई तरह की सामग्री जैसे- बिगबुक, चार्ट, पोस्टर, अभ्यास पुस्तिका, पठन कार्ड, इत्यादि प्रदान किए गए। साथ ही, शिक्षकों के लिए एक शिक्षक सन्दर्शिका भी प्रदान की गई जिसमें कक्षा में शिक्षण कार्य के लिए आवश्यक योजना, गतिविधियाँ और दिशा- निर्देश दिए गए थे।
स्कूल डेमोंस्ट्रेशन कार्यक्रम के तहत शिक्षकों की मदद के लिए अनेक गतिविधियाँ आयोजित की गई जिसमें राज्य और जिला संसाधन समूह का निर्माण और क्षमता वर्धन, शिक्षक प्रशिक्षण गॉड्यूल का निर्माण, रकूल स्तर पर शिक्षकों को सीधा राहयोग, शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशालाएँ, कक्षाओं का नियमित अवलोकन, समीक्षा, प्रिंट-समृद्ध कक्षाओं का निर्माण, छात्रों के सीखने के स्तर का आकलन, फॉलो अप प्लान बनाना और साथ ही साथ समुदाय के साथ जुड़ाव के लिए कार्य करना शामिल था।
इस कार्यक्रम में पाठ्यक्रम निर्माण से लेकर शिक्षकों को अकादमिक सहयोग देने तक एक व्यवस्थित तरीका काम में लिया गया। इसे स्ट्रक्चर्ड पेडागोजी एप्रोच भी कहते हैं। इस एप्रोच में शिक्षण में सन्तुलित भाषा शिक्षण पद्धति का उपयोग, भाषा शिक्षण के लिए हर रोज निश्चित समय (90 से 120 मिनट) देना, डिकोडिंग का स्पष्ट और व्यवस्थित शिक्षण, शिक्षक संदर्शिका के माध्यम से हर दिन की शिक्षण योजना में शिक्षकों को मार्गदर्शन, अच्छी तरह से डिजाइन की गई अभ्यास पुस्तिकाएँ और अन्य उपयोगी सामग्री प्रदान करना शामिल था। इसके अतिरिक्त उन्हें नियमित अन्तराल पर मूल्यांकन और नियोजित पुनरावृत्ति के अवसर दिए जाते थे।
गतिविधियों को उद्देश्यपूर्ण, आकर्षक, एवं सुगम बनाने के लिए आवश्यक रोचक तरीके काम में लिए गए। सरल से जटिल कौशल की ओर बढ़ना, सामाजिक गतिविधियों के माध्यम से सीखने के अवसर प्रदान करना, कक्षा में बच्चों की भाषा को स्थान देना, बच्चों के अधिगम स्तर के अनुसार सीखने-सिखाने की प्रक्रियाओं में बदलाव करना, कक्षा में प्रिंट समृद्ध वातावरण निर्मित करना, सभी बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न रणनीतियों का उपयोग यह सब इस कार्यक्रम के प्रमुख आधार थे।
इस कार्यक्रम के लिए सामग्री-निर्माण में SCERT, SRG, और DRG के कई सदस्यों ने योगदान दिया। इसके लिए उन्होंने उपलब्ध सामग्री की समीक्षा करके नई सामग्री का विकास किया। इसकी इंस्ट्रक्शनल डिजाइन में एक मार्गदर्शक ढाँचे का प्रयोग किया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में सभी बच्चे सक्रिय रूप से भाग ले सकें और उत्तरोत्तर उच्च दक्षताओं को सीखने के साथ वांछित कौशल में महारत हासिल कर सकें। इस डिजाइन में प्रारम्भिक भाषा और साक्षरता के लिए आवश्यक सभी घटकों के लिए रणनीतियाँ शामिल थीं। कार्यक्रम की अकादमिक रूपरेखा में बच्चों का सीखना सुनिश्चित करने पर काफी जोर था। इसके लिए कई तरह की रणनीतियाँ अपनाई गई जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है। कार्यक्रम में कक्षा-शिक्षण के लिए साप्ताहिक मॉडल 4+1+1 को अपनाया गया।
इस मॉडल के तहत, सप्ताह के पहले चार दिन किसी नई दक्षता पर कार्य होता था, पाँचवें दिन सप्ताह भर सीखी गई सभी दक्षताओं की पुनरावृत्ति होती थी और छठे दिन आकलन करके उन बच्चों के साथ विशेष शिक्षण कार्य होता था जो इन दक्षताओं को नहीं सीख पाए।
प्रत्येक 3-4 महीने के अन्तराल पर एक सावधिक आकलन करवाया जाता था, जिसके दौरान बच्चों के सीखने के आकलन के आधार पर 7-10 दिन तक उन्हें विशेष पुनरावृत्ति करवाई जाती थी। दैनिक स्तर पर पीछे छूट रहे बच्चों को व्यक्तिगत सहयोग के लिए विशेष समय उपलब्ध करवाया जाता था।
कार्यकम की इंस्ट्रक्शनल डिजाइन के प्रभाव पर शिक्षा मंत्रालय की पूर्व सचिव श्रीमती वृंदा स्वरूप का कहना है कि, “एलएलएफ की इंस्ट्रक्शनल डिजाइन ने स्थानीय भाषा, उदाहरण के तौर पर हिन्दी भाषा, पढ़ाने के प्रति शिक्षकों के दृष्टिकोण में एक पूर्ण परिवर्तन लाया है। निर्धारित पाठ्यपुस्तक, झिलमिल और एक व्यापक शिक्षक मार्गदर्शिका के बीच संगतता है, जो शिक्षकों को कक्षा में पढ़ाई जा रही विषयवस्तु के दायरे और दिशा से अवगत कराती है, जिसके लिए उन्हें प्रशिक्षित किया गया है कि वे इन्हें किस तरह से प्रयोग कर सकते हैं।”
वर्ष 2021-22 में कार्यक्रम के प्रभाव को समझने के लिए किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जिन विद्यालयों में यह कार्यक्रम चलाया गया उन विद्यालयों के बच्चों के सीखने में उन बच्चों की तुलना में 4.5 गुना वृद्धि हुई जिनमें यह कार्यक्रम नहीं चलाया गया। इस कार्यक्रम से जुड़ी रजनी शर्मा (शिक्षिका, जीपीएस, सुन्दरपुर, थानेसर) का कहना है कि “प्रारम्भिक भाषा शिक्षण पर 3 वर्ष पहले चले कार्यक्रम में हिन्दी भाषा को वैज्ञानिक, अर्थपूर्ण, सहज, सरल और रुचिपूर्ण ढंग से सीखना और सिखाना जाना जो आज तक 18 साल से शिक्षक के रूप में कार्य करके भी नहीं जान पाई थी। हर बच्चे का सीखना अति आवश्यक और उसका मौलिक अधिकार है पर कक्षा में शत प्रतिशत बच्चों का सीखना सुनिश्चित करना मैंने पहली बार प्रारम्भिक भाषा शिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से सम्भव होता देखा।”
इस कार्यक्रम को सफल बनाने में राज्य सरकार, स्थानीय शिक्षा विभाग के सदस्यों, शिक्षकों और समुदाय की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। कार्यक्रम की सफलता को देखते हुए हरियाणा सरकार ने निपुण भारत कार्यक्रम के तहत ‘प्रारम्भिक भाषा शिक्षण कार्यक्रम की रूपरेखा और उसकी सामग्री को राज्य स्तर पर अपनाया। हरियाणा सरकार वर्ष 2021 से इस रूपरेखा के आधार पर राज्य के सभी प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों के लिए सामग्री प्रदान कर रही है।
2026 तक एलएलएफ का लक्ष्य 10 लाख शिक्षकों और टीचर एडुकेटर्स की कक्षा पद्धतियों में सुधार के माध्यम से सरकारी स्कूलो में कक्षा 1-3 में पढ़ रहे लगभग 60 प्रतिशत (यानी 3.5 करोड) बच्चों की शिक्षा में सुधार करना है, जो मूलभूत कौशल नहीं सीखने के जोखिम का सामना कर रहे है।
सन्दर्भ
हैलिडे, माइकल ए.के. (1993) टुवर्ड्स ए लैंग्वेज-बेस्ड थ्योरी ऑफ़ लर्निंग. लिंग्विस्टिक्स एंड एजुकेशन मरयाणे वुल्फ (2007) प्रोस्ट एंड द स्क्विड द स्टोरी एंड साइस ऑफ रीडिंग ब्रेन सैकिया एंड मोहन्ती, 2004 बायलिंगुअलिज्म एंड इंटर ग्रुप रिलेशनशिप इन ट्राइबल एंड नॉन ट्राइबल कॉन्टैक्ट सिचुएशन
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